16 siddhiyan in hindi: भारतीय जीवन-धारा में जिन ग्रंथों का महत्त्वपूर्ण स्थान है उनमें पुराण प्राचीन भक्ति-ग्रन्थों के रूप में बहुत महत्त्वपूर्ण माने जाते हैं।
इन्हीं पुराणों में 16 मुख्य सिद्धियों का भी वर्णन किया गया है।
तो आइये जानते है 16 siddhiyan in hindi के बारे में।
बेहतर समझ के लिए अंत तक पढ़े और अपने दोस्तों के साथ जरूर शेयर करे ताकि वो भी 16 siddhiyan in hindi की जानकारी का लाभ ले पाए
ये भी पढ़े:
KIWI App se Paise Kaise Kamaye | 250 रुपए सीधे आपके बैंक खाते में
16 siddhiyan in hindi – 16 प्रकार की सिद्धियाँ

1. वाक् सिद्धि

जो भी वचन बोले जाए वे व्यवहार में पूर्ण हो, वह वचन कभी व्यर्थ न जाये, प्रत्येक शब्द का महत्वपूर्ण अर्थ हो
वाक् सिद्धि युक्त व्यक्ति में श्राप अरु वरदान देने की क्षमता होती हैं.
सिर्फ सिद्ध ऋषि ही नहीं, कुछ असाधारण व्यक्तियों में भी ऐसी शक्तियां होती थी।
जैसे शांतनु ने अपने पुत्र भीष्म को इच्छा मृत्यु और और द्रोण ने अपने पुत्र अश्वत्थामा को चिरंजीवी होने का वरदान दिया।
कई बार जब व्यक्ति अपने चरम आवेग में होता है, तब भी उसके मुख से निकली हुई बात सच हो जाती है।
2. दिव्य द्रिष्टी सिद्धि

दिव्यदृष्टि का तात्पर्य हैं कि जिस व्यक्ति के सम्बन्ध में भी चिन्तन किया जाये, उसका भूत, भविष्य और वर्तमान एकदम सामने आ जाये.
आगे क्या कार्य करना हैं, कौन सी घटनाएं घटित होने वाली हैं, इसका ज्ञान होने पर व्यक्ति दिव्यदृष्टियुक्त महापुरुष बन जाता हैं.
पुराने ज़माने में सिद्ध ऋषियों के पास ये सिद्धि होती थी।
श्रीकृष्ण ने गीता ज्ञान के लिए अर्जुन को और महर्षि व्यास ने संजय को दिव्य दृष्टि प्रदान की थी।
सभी प्रमुख देवताओं और सप्तर्षियों में ये सिद्धि स्वाभाविक रूप से होती है।
3. प्रज्ञा सिद्धि

प्रज्ञा का तात्पर्य यह हें की मेधा अर्थात स्मरणशक्ति, बुद्धि, ज्ञान इत्यादि! ज्ञान के सम्बंधित सारे विषयों को जो अपनी बुद्धि में समेट लेता हें वह प्रज्ञावान कहलाता हें!
जीवन के प्रत्येक क्षेत्र से सम्बंधित ज्ञान के साथ-साथ भीतर एक चेतनापुंज जाग्रत रहता हें.
इसका एक उदाहरण महर्षि व्यास हैं जिन्होंने महाभारत जैसे महान ग्रंथ की रचना की जिसके बारे में ये कहा गया है कि जो कुछ भी यहां है वो संसार में है और जो यहां नहीं वो संसार में कही नहीं है।
इसके अतिरिक्त श्रीराम और श्रीकृष्ण को भी इस संसार के सभी चीजों का ज्ञान था। उनके अतिरिक्त पितामह भीष्म का ज्ञान भी अथाह था।
4. दूरश्रवण सिद्धि

इसका तात्पर्य यह हैं की भूतकाल में घटित कोई भी घटना, वार्तालाप को पुनः सुनने की क्षमता.
सिद्ध ऋषियों में ये सिद्धि हुआ करती थी। महावीर हनुमान के पास भी ये सिद्धि थी।
कुछ मायावी राक्षसों के पास भी ऐसी सिद्धियां होती थीं।
5. जलगमन सिद्धि

यह सिद्धि निश्चय ही महत्वपूर्ण हैं.
इस सिद्धि को प्राप्त योगी जल, नदी, समुद्र पर इस तरह विचरण करता हैं मानों धरती पर गमन कर रहा हो.
सिद्ध ऋषियों के पास ये सिद्धि होती थी।
महर्षि अगस्त्य ने तो समुद्र पर खड़े होकर उसका पान कर लिया था।
अधिक दूर क्यों जाएँ, आज से करीब 100 वर्ष पहले भी ऐसे कई सिद्ध पुरुष थे जिनके पास ये सिद्धियां हुआ करती थी और वे जल में स्वच्छद विचरण कर सकते थे।
6. वायुगमन सिद्धि

इसका तात्पर्य हैं अपने शरीर को सूक्ष्मरूप में परिवर्तित कर एक लोक से दूसरे लोक में गमन कर सकता हैं
एक स्थान से दूसरे स्थान पर सहज तत्काल जा सकता हैं.
बजरंगबली इस सिद्धि के एक जीवंत उदाहरण हैं।
उनके अतिरिक्त मायावी राक्षसों में भी ये सिद्धि हुआ करती थी।
मेघनाद ने इस सिद्धि के बल पर आकाश में रह कर लक्ष्मण से युद्ध किया था।
7. अदृश्यकरण सिद्धि

अपने स्थूलशरीर को सूक्ष्मरूप में परिवर्तित कर अपने आप को अदृश्य कर देना!
जिससे स्वयं की इच्छा बिना दूसरा उसे देख ही नहीं पाता हैं.
मायावी राक्षसों के पास ये सिद्धि हुआ करती थी।
इसी सिद्धि के बल पर रावण के पुत्र मेघनाद ने अदृश्य होकर लक्ष्मण से युद्ध किया था
और श्रीराम और लक्ष्मण को नागपाश से बांध दिया था।
इसके अतिरिक्त कई सिद्ध ऋषि अदृश्य होकर विभिन्न स्थानों पर विचरण कर सकते थे।
8. विषोका सिद्धि

इसका तात्पर्य हैं कि अनेक रूपों में अपने आपको परिवर्तित कर लेना!
एक स्थान पर अलग रूप हैं, दूसरे स्थान पर अलग रूप हैं.
जिस साधक के पास यह सिद्धि होती है वह अपने आप को अनेक रूप में परिवर्तित कर सकता है।
ऐसा व्यक्ति एक स्थान पर किसी एक रूप में और दूसरे स्थान पर किसी अन्य रूप में उपस्थित रह सकता हैं।
राक्षसों में ये सिद्धि हुआ करती थी।
वहीं श्रीकृष्ण ने अपनी माया से ऐसा कई बार किया था
जब वे एक ही समय पर कई स्थानों पर उपस्थित रहते थे।
इस सिद्धि के बल पर श्रीकृष्ण एक साथ अपनी 16,108 रानियों के साथ उपस्थित रहते थे।
9. देवक्रियानुदर्शन सिद्धि

इस क्रिया का पूर्ण ज्ञान होने पर विभिन्न देवताओं का साहचर्य प्राप्त कर सकता हैं!
उन्हें पूर्ण रूप से अनुकूल बनाकर उचित सहयोग लिया जा सकता हैं.
इस सिद्धि को प्राप्त करने के बाद साधक विभिन्न देवताओं का सानिध्य प्राप्त कर सकता है।
यही नहीं वो देवताओं को अपने अनुकूल बना कर उनसे उचित सहयोग ले सकता है।
हमारे पुराणों में कई महान ऋषि हुए हैं जो अपनी इच्छा अनुसार देवताओं से मिल सकते हैं।
दुर्वासा, भृगु, वशिष्ठ इत्यादि ऐसे कई ऋषि इसके उदाहरण हैं।
10. कायाकल्प सिद्धि

कायाकल्प का तात्पर्य हैं शरीर परिवर्तन!
समय के प्रभाव से देह जर्जर हो जाती हैं
लेकिन कायाकल्प कला से युक्त व्यक्ति सदैव रोगमुक्त और यौवनवान ही बना रहता हैं.
कायाकल्प यानि “शरीर परिवर्तन”। इस सिद्धि को पूर्ण रूप से प्राप्त करने के बाद सहक कभी बूढा नहीं होता
यदि उसका शरीर वृद्ध एवं जर्जर भी है तब भी इस सिद्धि के बल पर वो पुनः अपने आप को युवा बना सकता है।
ऐसे कई ऋषि थे जिन्होंने अपने वृद्ध आयु को छोड़ कर यौवन को पुनः प्राप्त किया।
कई ऐसे ऋषि हैं जो अजर हैं, अर्थात जिनपर बुढ़ापे का कोई प्रभाव नहीं पड़ता।
11. सम्मोहन सिद्धि

सम्मोहन का तात्पर्य हैं कि सभी को अपने अनुकूल बनाने की क्रिया!
इस कला को पूर्ण व्यक्ति मनुष्य तो क्या, पशु-पक्षी, प्रकृति को भी अपने अनुकूल बना लेता हैं.
ये बहुत प्रसिद्ध सिद्धि है जिससे साधक किसी को भी अपने अनुकूल कर सकता है
उनसे जो भी चाहे वो करवा सकता है।
मनुष्य तो मनुष्य, इस सिद्धि को प्राप्त साधक पशु-पक्षियों को भी अपने अनुकूल कर सकता था।
इसे वशीकरण विद्या भी कहते हैं। रावण वशीकरण विद्या में माहिर था।
माना जाता है कि नाग जाति के लोगों में स्वाभाविक रूप से सम्मोहन की सिद्धि होती थी।
यहां तक कि आधुनिक काल में भी ऐसे कई कई सिद्ध पुरुष हुए हैं जो किसी को भी सम्मोहित कर सकते थे।
12. गुरुत्व सिद्धि

गुरुत्व का तात्पर्य हैं गरिमावान!
जिस व्यक्ति में गरिमा होती हैं, ज्ञान का भंडार होता हैं, और देने की क्षमता होती हैं, उसे गुरु कहा जाता हैं!
और भगवन कृष्ण को तो जगद्गुरु कहा गया हैं.
गुरुत्व सिद्धि प्राप्त होने पर मनुष्य गरिमावान हो जाता है।
प्राचीन काल में गुरु का पद अत्यंत महान माना जाता था।
यहां तक कि ये कहा गया है कि गुरु ब्रह्मा, विष्णु एवं शंकर के सामान है।
देवताओं के गुरु बृहस्पति और दैत्यों के गुरु शुक्राचार्य को सर्वश्रेष्ठ गुरु के रूप में मान्यता प्राप्त है।
उनके अतिरिक्त वशिष्ठ, परशुराम एवं द्रोण के गुरुत्व की भी बहुत ख्याति है।
भगवान शंकर को जगतगुरु कहा गया है।
13. पूर्ण पुरुषत्व सिद्धि

इसका तात्पर्य हैं अद्वितीय पराक्रम और निडर, एवं बलवान होना!
इस सिद्धि से साधक बचपन में भी अपने पूर्ण पुरुषत्व और शक्ति को प्राप्त कर सकता है।
श्रीराम और श्रीकृष्ण में ये सिद्धि बाल्यकाल से ही विद्यमान थी।
इसी सिद्धि के बल पर श्रीकृष्ण ने बचपन में ही पूतना, भौमासुर इत्यादि कई दैत्यों का वध कर दिया।
16 वर्ष की आयु में ही उन्होंने चाणूर, मुष्टिक एवं कंस जैसे महावीरों का वध कर दिया।
पांडवों में भीम के पास भी ये सिद्धि थी।
यही कारण था कि वे अपने बाल्यकाल में भी अपराजेय थे।
श्रीराम के पुत्र लव और कुश ने भी इसी सिद्धि के बल पर अपने बचपन में ही पूरी अयोध्या की सेना को परास्त कर दिया।
14. सर्वगुण संपन्न सिद्धि

जितने भी संसार में उदात्त गुण होते हैं, सभी कुछ उस व्यक्ति में समाहित होते हैं, जैसे – दया, दृढ़ता, प्रखरता, ओज, बल, तेजस्विता, इत्यादि!
इन्हीं गुणों के कारण वह सारे विश्व में श्रेष्ठतम व अद्वितीय मन जाता हैं, और इसी प्रकार यह विशिष्ट कार्य करके संसार में लोकहित एवं जनकल्याण करता हैं.
कुछ ऐसे उत्तम पुरुष होते हैं जिनमे संसार के सभी उत्कृष गुण समाहित होते हैं।
ऐसे व्यक्ति को सर्वगुणसम्पन्न कहा जाता है।
श्रीराम इस के सबसे प्रमुख उदाहरण हैं।
संसार में ऐसा कोई भी उत्तम गुण नहीं था जो उनमे नाम हो।
इसीलिए श्रीराम को “पुरुषोत्तम” कहा जाता है।
कई ऐसी स्त्रियाँ भी हैं जिनमे ये सिद्धि थी।
सीता एवं द्रौपदी ऐसी ही स्त्रियाँ थी जो सर्वगुणसम्पन्न थी।

इस सिद्धि को प्राप्त करने के बाद साधक की प्रसिद्धि पूरे विश्व में फ़ैल जाती है और वो अपने इन गुणों का प्रयोग लोक कल्याण के लिए करते हैं।
15. इच्छा मृत्यु सिद्धि

इन कलाओं से पूर्ण व्यक्ति कालजयी होता हैं, काल का उस पर किसी प्रकार का कोई बंधन नहीं रहता.
वह जब चाहे अपने शरीर का त्याग कर नया शरीर धारण कर सकता हैं.
इस सिद्धि को प्राप्त साधक अपनी इच्छानुसार अपनी मृत्यु का चुनाव कर सकता है।
अर्थात उनकी इच्छा के बिना स्वयं काल भी उन्हें छू नहीं सकता है। यही नहीं, वो अपनी इच्छा अनुसार एक शरीर को त्याग कर दूसरा शरीर धारण कर सकता है।
इच्छा मृत्यु की सिद्धि प्राप्त व्यक्तियों में सबसे प्रसिद्ध पितामह भीष्म हैं। उन्हें अपने पिता शांतनु से इच्छा मृत्यु का वरदान मिला था।
वे वैसे ही एक अजेय योद्धा थे और उनकी इच्छा मृत्यु की सिद्धि के कारण उनकी मृत्यु और पराजय असंभव थी।
यही कारण था कि श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को स्वयं पितामह से उनकी मृत्यु का उपाय पूछने को कहा।
जब अर्जुन ने उन्हें अपने बाणों की शैय्या पर बांध दिया तब अपनी इसी सिद्धि के बल पर भीष्म युद्ध के पश्चात भी उसी शर-शैय्या पर 58 दिनों तक जीवित रहे थे।
उसके बाद जब भगवान सूर्य नारायण उत्तरायण को आये, तब भीष्म ने अपनी इच्छा अनुसार अपने शरीर का त्याग कर दिया।
16. अनुर्मि सिद्धि

अनुर्मि का अर्थ हैं. जिस पर भूख-प्यास, सर्दी-गर्मी और भावना-दुर्भावना का कोई प्रभाव न हो.
इस सिद्धि को प्राप्त व्यक्ति पर सृष्टि की किसी भी घटना का कोई प्रभाव नहीं पड़ता।
ऐसा व्यक्ति भूख-प्यास, सुख-दुःख, सर्दी-गर्मी, भावना-दुर्भावना इत्यादि से परे होता है।
उसके लिए जीवन एवं मृत्यु सामान होती है और संसार के सभी योनि के जीव उनके लिए सामान होते हैं।
जो सिद्ध पुरुष ईश्वर का वास्तविक स्वरुप जान लेते हैं वो स्वाभाविक रूप से इस सिद्धि को प्राप्त कर लेते हैं
श्रीकृष्ण ने भी गीता में अर्जुन को इस ज्ञान को देने का प्रयास किया है।
निष्कर्ष- 16 siddhiyan in hindi
मुझे विश्वास है आपने 16 siddhiyan in hindi पूरा पढ़ लिया होगा
हमारे धर्म के बारे अच्छी और रोचक जानकारी को जरूर हमें दूसरे के साथ साझा करना चाहिए
इसलिए बिलकुल भी देर न करे और तुरंत इस 16 siddhiyan in hindi पोस्ट को अपने दोस्तों और रिश्तेदारों के साथ शेयर करे
जय सिया राम !